डिटॉक्सीफिकेशन : शरीर से विषैले तत्त्वों को निकालना

शरीर में मौजूद विषैले तत्त्व अक्सर बीमारी का कारण बनते हैं। इन तत्त्वों को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया ही डिटॉक्सीफिकेशन कहलाती है। इस प्रक्रिया में खानपान का बेहद अहम रोल है। मौसम के अनुसार खानपान में बदलाव कर शरीर का शोधन किया जाता है।
 
लिक्विड डाइट
सबसे पहले शरीर में पानी की मात्रा बढ़ाते हैं। इसके लिए पानी, जूस, नींबू पानी, नारियल पानी छाछ आदि दी जाती है। एक दिन में कम से कम 5-6 लीटर तरल पदार्थ दिए जाते हैं।
खट्टे व रसीले फल
खानपान में ऐसे फल शामिल किए जाते हैं जिनमें रेशे व पानी की मात्रा अधिक हो, जैसे मौसमी, नींबू, संतरा आदि। गर्मी में खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा अधिक लेने की सलाह दी जाती है।
ताजी हरी सब्जियां
हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक जरूर लेनी चाहिए। इसके अलावा लौकी, तुरई, टिंडे को भी डाइट का हिस्सा बनाएं। ये शरीर में नमीं की मात्रा बढ़ाती हैं जिससे टॉक्सिन बाहर निकलते हैं।
बीज: सब्जा-चिया के बीज ले सकते हैं।  दो चम्मच बीज को पानी मेंं भिगो दें कुछ देर बाद इसे खाएं।
आयुर्वेद के मुताबिक शरीर से विषैले तत्त्वों को बाहर निकालने के लिए दी जाने वाली औषधियों का चयन मौसम के अनुसार किया जाता है।
पंचकर्म भी कारगर
आयुर्वेद में डिटॉक्सीफिकेशन के लिए दो सूत्र के बारे में बताया गया है। इसमें पहला सूत्र-शोधन व दूसरा-शमन है। पंचकर्म की प्रक्रिया इन सूत्रों पर आधारित है। पंचकर्म के पांच चरण वमन, विरेचन, बस्ती, नस्य व रक्तमोक्षण के माध्यम से शरीर का शोधन कराया जाता है। व्यायाम से निकलने वाला पसीना भी फायदा पहुंचाता है।
 
ये न खाएं
अधिक तला हुआ भोजन, फ्राई फूड, फास्ट फूड, चिकन, फिश, मीट आदि। अगर नॉन-वेज फूड ले भी रहे हैं तो इन्हें रोस्टेड या ग्रिल्ड किया हुआ ले सकते हैं। खुले में रखा हुआ भोजन न खाएं। प्रदूषण, फूड प्रिजर्वेटिव,  पानी में हैवी मेटल से विषैले तत्त्व बढ़ते हैं।
फायदे
शरीर में तरल की मात्रा बढऩे पर थकान, कब्ज, यूरिनरी प्रॉब्लम, हृदय रोग, मोटापा, डायबिटीज जैसी समस्या या रोगों से बचाव होता है।
ये जानना जरूरी
होम्योपैथी में खानपान के अलावा कुछ ऐसी दवाएं भी दी जाती हैं जो शरीर के विषैले तत्त्वों को बाहर निकालती हैं।
आयुर्वेद में डिटॉक्सीफिकेशन के लिए कुछ औषधियों की मदद से तैयार किया गया काढ़ा दिया जाता है।